यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (UBI) की ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वैश्विक स्तर पर चल रहे टैरिफ युद्ध और सोने की कीमतों में निरंतर वृद्धि आगामी महीनों में भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) को प्रभावित कर सकती है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भले ही खाद्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर बनी रहें, फिर भी मुद्रास्फीति के मापक CPI में वृद्धि देखने को मिल सकती है। इसका मुख्य कारण गैर-खाद्य आवश्यक वस्तुओं, खासकर कीमती धातुओं जैसे सोने की बढ़ती कीमतें हैं, जो समग्र मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती हैं।
अप्रैल 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति में मामूली गिरावट
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2025 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 3.34% से घटकर 3.16% हो गई है। यह छह वर्षों में सबसे निचला स्तर माना जा रहा है। इस गिरावट के पीछे मुख्य वजहें हैं सब्जियों, दालों, फलों, मांस और मछली, व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों तथा अनाज की कीमतों में स्थिरता और कमी।
हालांकि, कोर मुद्रास्फीति (जो खाद्य और ईंधन की कीमतों को छोड़कर मापी जाती है) अप्रैल में लगभग स्थिर रही, जो 4.09% पर दर्ज की गई। अगर सोने को कोर मुद्रास्फीति से हटा दिया जाए तो यह घटकर 3.3% रह जाती है। मार्च 2025 में कोर CPI एक्स-ट्रांसपोर्ट 4.26% था, जो अप्रैल में 4.18% पर थोड़ा नरम हो गया।
व्यक्तिगत देखभाल क्षेत्र में भी मामूली सुधार
कोर मुद्रास्फीति के अंतर्गत आने वाले व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों की कीमतों में भी गिरावट आई है। मार्च 2025 में यह 13.50% था, जो अप्रैल में घटकर 12.90% रह गया। यह दर्शाता है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में नियंत्रण का प्रयास सफल हो रहा है, जो समग्र मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मददगार है।
RBI की रेपो दर में संभावित कटौती
रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जून और अगस्त 2025 के बीच अपनी रेपो दर में कुल 50 आधार अंक की कटौती कर सकता है। यह कदम मुद्रास्फीति के वर्तमान नियंत्रित स्तर और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए लिया जा सकता है।
वित्त वर्ष 2025 के लिए CPI को 3.7% के स्तर पर रहने का अनुमान है, जो RBI की 2-6% की मुद्रास्फीति सीमा के भीतर है। अप्रैल 2025 का CPI भी 3.16% दर्ज किया गया है, जो 4% के लक्ष्य से काफी नीचे है। इस स्थिति से यह संकेत मिलता है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और RBI अपनी मौद्रिक नीति में अधिक लचीलापन दिखा सकता है।
मुद्रास्फीति का इतिहास और RBI का नियंत्रण
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति ने पिछली बार अक्टूबर 2024 में RBI की सहनीय सीमा 6% को पार किया था। तब से यह लगातार 2-6% की सीमा के भीतर बनी हुई है, जो RBI के लिए एक संतोषजनक स्थिति है। खाद्य पदार्थों की कीमतें भारतीय नीति निर्माताओं के लिए हमेशा चिंता का विषय रही हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि मुद्रास्फीति 4% के आसपास रहे ताकि आम जनता की क्रय शक्ति बनी रहे।
भारतीय रिजर्व बैंक ने फरवरी 2025 में अपनी बेंचमार्क रेपो दर में कटौती की, जो पिछले पांच वर्षों में पहली बार था। इससे पहले, RBI ने लगातार ग्यारह बार अपनी रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखा था। यह नीति मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने और आर्थिक विकास को स्थिर बनाए रखने का प्रयास था।
भविष्य की चुनौतियां और संभावनाएं
हालांकि खाद्य पदार्थों की कीमतें स्थिर हैं, लेकिन बढ़ती हुई सोने की कीमतें और वैश्विक टैरिफ युद्ध आर्थिक दबाव बढ़ा सकते हैं। ऐसे में भारतीय बाजार और उपभोक्ताओं को सतर्क रहने की आवश्यकता है। मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए नीति निर्माताओं को सतत प्रयास करने होंगे, ताकि आर्थिक विकास बाधित न हो और जनता को महंगाई से राहत मिले।
निष्कर्ष
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और सोने की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव के बावजूद भारत ने मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में अच्छी सफलता हासिल की है। RBI की मौद्रिक नीतियां और खाद्य वस्तुओं की स्थिर कीमतें इस सफलता की प्रमुख वजह हैं। आने वाले महीनों में रेपो दर में संभावित कटौती से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे आम जनता को आर्थिक राहत मिलेगी।